Thursday, August 29, 2013

Kavita Gupta- 5 poems in Hindi / Canada


1.आओ हम दोनों !!

नीले नभ की ओर बढ़ चलें ,
बिना पंखों के ही, उड़ान भरें l
ख्यालों के पुलिन्दे बाँध कर ,
लक्ष्य की ऊँचाइयाँ, चढ़ चलें l  

पवन के हिंडोले, आनंद देंगे ,
शायद, जन्नत पहचान लेंगें l 
गगन का कोई तो छोर होगा ?   
उस रंगीन जगह को ढूँढ लेंगें l 

बादलों के झुरमट, हैं बस्तियाँ ,
अपने आशियाने की सोच लेंगे l 
मानो, बना लिया छोटा सा घर ,
खबर उसकी, आपको जरुर देंगे l   

(एक नया हसीन ख्वाब) 

2..मौत, पहेली ! सहेली 

हर इन्सान अपनी मौत की कहानी, साथ ले कर आया ,
जब खुद ही न जाने, दुखद ! किसी को बता भी न पाया l 

कोई खुशनसीब' मिटटी का पुतला' फूलों से पूरा ढका था ,
किसी का विकृत चेहरा देख, अपना भी न, पहचान पाया l 

कुछ का अलविदा कहना, तो जमीन पैरों तले से निकली ,
सजीव तो क्या ! निर्जीव भी अपनी जगह सुबकता पाया l 

चुपके से कई अपने, धोखे से दगा देकर, खामोश कर गए ,
मौत कैसी है तूँ पहेली ? तुम्हें सिर्फ ईश्वर ही समझ पाया l 

यह अंतरंग सहेली, हर दम है साथ रहती, दोस्ती निभाती ,
सुना !! ऊँची अक्ल की मल्लिका, कभी पता भी न बताया l

3. माँ तुम कितनी महान !!

मेरी हँसी, तुम पर जादू करती 
मुस्कान पर हो जाए, तूँ कुर्बान 
रोने के रहें , चाहे, अनेक कारण
ढूँढ लेती हो हल, कर के पहचान l 

मेरे पीछे आगे घूमती, न थकती 
आखिर कैसी डाली, तुझ में जान ?
मुरझाया चेहरा देखते उदास होती 
ईश्वर से विनय ! मांगती कल्याण l   

बच्चों का जीवन, उर्वरा बनाने हेतू ,
ममता की बदली से डाल देती प्राण l 
एक पलड़े में अंतर्यामी, दूसरे में तूँ ,
जीते जी सम्मान देना, यही है ज्ञान l 

नाज़ुक, हल्की होती, पलकें तुम्हारी
हर्षित है, जब देखे अपनी फुलवाड़ी l 
'कुम्हार' कहाँ से यह मिटटी लाया ?
तेरी तुलना में, लगा हर तुलना हारी l  

4. दिल से !!

कसम से, ऐ दिल, तूं बस, अकेला चला चल ,
ऊँगली ही पकड़ना, जब कभी तूं चाहे सम्बल l 

इससे अधिक तुम्हें महंगा पड़ेगा, है निष्कर्ष ,
अपने अंतर्मन की 'उसे' ही सुनाना,जो उत्कृष्ट l

मैंने बाहर रह कर देखा है, तूं अँधेरे से  निकल ,
दलदल बहुत, हिदायत, कहीं जाना न फिसल l

देखा, चेहरे पर चेहरा, न कोई जुबान पर पहरा ,
हल्की फुलकी बात भी, कर जाती,जख्म गहरा l   

तुझे नाज़ुक, कोमल, मशीनरी का मालिक कहते ,
मनमानी भी करता,,परन्तु कभी कहलाए बेचारा l 
लिए नौका, चप्पू थामे, चलाचल नाविक जो ठहरा ,
धीरे से कहना, धैर्य से सुनूगी, तेरा बड़ा सख्त पहरा

5. डर !!
पानी को देखते, दिल मचलने का डर ,
लहरों को देखते, उठती उमंगों का डर l 
किनारों पर चलने से,फिसलने का डर ,
मझधार से घबराएँ,  डूब जाने का डर l 

कभी अन्दर ! बैठे बिठाए, बाहर का डर ,
कभी अपनों का, नही तो बेगानों का डर l 
साया बना साथ रहता, बनाए अपना घर ,
एक 'तेरी गोद', बस जहाँ मैं रहती, निडर l



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